एक दिन…

हर शाम की तरह एक दिन तनहा हम बैठे थे, दिल के लफ़्ज़ों को कागज़ पर उतरा करते थे. ये सिलसिला मेरी तन्हाइयों तक सिमित था, ख्याल मुझमे और चन्द कागज़ के टुकड़ों तक सिमित … Continue reading एक दिन…